देश के पहले प्रधानमंत्री पंडि त जवाहरलाल नेहरु ने अपनी आत्मकथा में लिखा है-
हम भारतवर्ष की महिलाओं और नारीत्व के बहुत आभारी हैं कि जिन्होंने विपदा की घड़ियों में भी अपने घरों को छोड़कर, एक अदम्य साहस और सहनशीलता की मिसाल देते हुए देश के स्व्तन्त्र्तार्थियों के साथ का ँधे से कांधा मिलाकर सहयोग दिया और आज़ादी के स्वप्न को धरातलीय अस्तित्व प्रदान किया (जवाहरलाल नेहरु, एन ऑटोबायोग्राफी, पृष्ठ 642, पेंगुइन बुक्स, नयी दिल्ली, 110017).
यदि भारत के निर्माण में महिला ओं के योगदान को सराहा जाये तो बेग़म हज़रत महल, झाँसी की रानी, सुनीता विलियम् स, कल्पना चावला तथा सानिया मिर्ज़ा जैसी महिलाओं की एक विस्तृत सूची बनायीं जा सकती है। इसके एवज इस पुरुष प्रधान भारतीय समाज ने महिलाओं को जो
कुछ भी दिया है, वो नगण्य है।इसे भारतवर्ष का दुर्भाग्य ही कहा जा सकता
है कि एक तरफ तो भाजपा जैसी पार्टियाँ महिला सशक्तिकरण के घडयाली आंसू रोती हैं, वहीँ दूसरी ओर जब सोनिया गाँधी को प्रधानमं त्री बनाने की बात आई तो सबसे पहले महिला सशक्तिकरण के विरुद्ध यही लोग आये।
आधुनिक भारतीय समाज में महिलाओं के लिये जो ईर्ष्या पनप रही है उसका अंदाज़ा निरंतर गिरते 'बाल लिंगानुपात' से लगाया जा सकता है जो 1961-2011 के दौरान 976 से 62 अंक घटकर 914 पर आ पहुंचा है। यह इस बात का द्योतक है कि आज भले ही हम चाँद पर पहुँच गए हैं ले किन हमारी सोच आज भी उन अरबों की भांति है जो मुहम्मद साहब के इस दुनिया में आगमन से पूर्व अपनी बेटियों को ज़मीन मे ं ज़िन्दा गाढ़ दिया करते थे। इसके अतिरिक्त, महिलाएं आर्थिक, सामजिक और राजनैतिक असमानताओं का जो दंश झेल रही हैं उसको इस काग़ज़ के टुकड़े पर बयान करना असंभव है। महिलाओं के सामजिक उत्पीडन की पराकाष्ठा का अंदाज़ा हाल ही में 'सोनी सोरी' के साथ हुए यौन उत्पीडन से लगाया जा सकता है।
ग़ौरतलब है कि सोनी सोरी को सिर्फ इस बि ना पर सताया गया है कि वह एक माओवादी महिला हैं और कदाचित इसके पीछे वह मानसिकता भी उत्तरदायी है जो यह समझती है कि माओवादी मानव योनी में न रहकर जंगली जानवरों की तरह इस धरती पर निवा स करते हैं। अख़बार से मिली खबर के मुताबिक, माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्देशानु सार
जब सोनी को कोलकाता के एन . आर . एस. मेडिकल कालेज में भेजा गया तो
डाक्टरों ने पाया कि मानवरुपी दरिंदों ने उस महिला की योनी
तथा गुदा में छोटे-छोटे पत्थर ठूंस दिए थे। अमानवीयता की ऐसी मिसाल यदि उस धरती पर देखने को मिले जहाँ सीता, लक्ष्मी, काली, दुर्गा, गंगा आदि को लोग माता कहकर बुला ते हैं तो भारतमाता का इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है? दुनियाभर में भारत ही एक ऐसा दे श है जहाँ पुरुष जब घर से नि कलता है तो कभी माँ की दुआ, कभी बहन की राखी तो कभी पत्नी का करवाचौथ उसकी रक्षा करता है।
यह दुर्घटना विश्व क्षितिज पर इतनी भयावह सिद्ध हुई है कि समा ज सेवक नॉम चौमस्की भी इसकीपश्विकता से कम्पित और शिथिल नज़र आयें हैं और उनहों ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर आग्रह किया है कि वह तुरंत पीड़ित के प्रा थमिक उपचार का प्रबंध करें। नॉम चौमस्की के अतिरिक्त जीन ड्रेज, आनंद पटवर्धन, अरूणा रॉय, हर्ष मन्दर तथा अरुंधती रॉय ने भी प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर'आज़ाद' भारत में महिला शोषण पर चिंता जताई है।
इस घटना में और भी दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि पुलिस अधीक्षक अंकित गर्ग, जो सोरी प्रकरण में लिप्त पाए गए थे, उनको इसी वर्ष गणतंत्र दिवस पर 'वीरता पदक' से नवाज़ा गया है। यदि पुरुस्कारों और राष्ट्रीय सम्मानों के साथ यही चलन जारी रहा तो इससे उनकी गरिमा को अभूतपूर्व क्षति होने का भय है। अब देखना यह है कि ज्ञान, विज्ञान, शक्ति, ऊर्जा, धन इत्यादि का आग्रह देवियों से करने वाला यह जनमानस 'महिला की महत्ता' को कब समझ पायेगा? वर्तमान परिवेश में महिलाओं की दुर्दशा को महान शायर 'साहिर लुधियानवी' के शब्दों में कुछ यूँ बयां किया जा सकता है:
लोग औरत को फ़क़त जिस्म समझ लेते हैं,रूह भी होती है उसमे, यह कहाँ सोचते हैं।कितनी सदियों से यह वहशत का चलन जारी है,कितनी सदियों से है क़ायम यह गुनाहों का रिवाज़;लोग औरत की हर चीख को नगमा समझे,वो काबीलों का ज़मान हो, याशहरों का रिवाज़। ज़बर से नस्ल बढे, ज़ुल्म से तन मेल करे,ये अमल हम में है, बे इल्म परिंदों में नहीं;हम जो इंसानों की तहज़ीब लिए फिरते हैं,हम सा वहशी कोई जंगल के दरिंदोंमें नहीं। (साहिर लुध्यान्वी)
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