हज़रत मारूफ़ करख़ी (रह.) बग़दाद शरीफ़ में "कर्ख" इलाक़े के रहने वाले
थे। आपके माता-पिता मज़हबी तौर पर ईसाई धर्म के अनुयायी थे। हज़रत मारूफ़ करख़ी
(रह.) को आरंभिक शिक्षा हासिल करने के लिए एक मकतब (विद्यालय) में दाखिला
दिलाया गया जिसमे उनके शिक्षक ने उन्हें ये पढ़ने को कहा कि "ख़ुदा तीन
हैं"।हज़रत मारूफ़ करख़ी (रह.) ने ऐसा बोलने से इंकार कर दिया और आप बोले -
"ख़ुदा तो सिर्फ एक है"। मकतब के उस्ताद ने उनको बहुत मारा-पीटा लेकिन हज़रत
मारूफ़ करख़ी (रह.) ने ज़ुबान से सिर्फ एक ही बात निकली और वो यह कि "ख़ुदा एक
है"।
इसके बाद हज़रत मारूफ़ करख़ी (रह.) वहाँ से फ़रार होकर
हज़रत अली बिन मूसा रज़ा (अलैहिस्सलाम) की ख़िदमत में हाज़िर हुए और वहां आपने
कलमा-ए-तैयब्बा पढ़ा और इस्लाम में दाख़िल हुए।
हज़रत अली बिन मूसा रज़ा (अलैहिस्सलाम) कौन हैं?
हज़रत
अली बिन मूसा रज़ा (अलैहिस्सलाम) को इमाम मूसा रज़ा/ इमाम अली रज़ा के नाम से
भी जाना जाता है। आप अहले-बैत के इमाम है और हज़रत मुहम्मद सल. के खानदान
से ताल्लुक़ रखने वाले है (अहले-बैत: हज़रत मुहम्मद सल.के घर वाले जिनमे
मुहम्मद, अली, फ़ात्मा, हसन, हुसैन-अलैहिमुस्सलाम शामिल हैं)। हुज़ूर की
अहलेबैत में 12 इमाम इस प्रकार हैं:
१. हज़रत इमाम अली इब्ने अबु-तालिब (अलैहिस्सलाम) (चौथे ख़लीफ़ा)
२. हज़रत इमाम हसन इब्ने अली इब्ने अबु-तालिब (अलैहिस्सलाम)
३. हज़रत इमाम हुसैन इब्ने अली इब्ने अबु-तालिब (अलैहिस्सलाम)
४. हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन इब्ने इमाम हुसैन (अलैहिस्सलाम)
५. हज़रत इमाम बाक़र इब्ने इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अलैहिस्सलाम)
६. हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ इब्ने इमाम बाक़र (अलैहिस्सलाम)
७. हज़रत इमाम मूसा काज़िम इब्ने इमाम जाफ़र सादिक़ (अलैहिस्सलाम)
८. हज़रत इमाम अली रज़ा इब्ने इमाम मूसा काज़िम (अलैहिस्सलाम)
९. हज़रत इमाम मुहम्मद तक़ी इब्ने इमाम अली रज़ा (अलैहिस्सलाम)
१०. हज़रत इमाम अली नक़ी इब्ने इमाम मुहम्मद तक़ी (अलैहिस्सलाम)
११. हज़रत इमाम हसन अस्करी इब्ने इमाम अली नक़ी (अलैहिस्सलाम)
१२. हज़रत इमाम मुहम्मद मेंहदी इब्ने इमाम हसन अस्करी (अलैहिस्सलाम)
दूसरे
इमाम से लेकर 12वें इमाम तक सभी हज़रत अली अलैहिस्सलाम (अहलेबैत के पहले
इमाम) और हज़रत फ़ात्मा ज़ेहरा (सलामुल्लाहे अलैहा) की औलाद हैं। 12वें इमाम
हज़रत इमाम मेंहदी का ज़ुहूर (appearance) क़यामत के क़रीब होना है जब आप हज़रत
ईसा अलैहिस्सलाम के भी इमाम होंगे और हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम आपके पीछे नमाज़
अदा करेंगे।
12 इमामों और हज़रत फ़ात्मा ज़हरा के साथ हज़रत
मुहम्मद (सल.) को मिलाकर चौदह पाक ज़ात होती हैं।इस्लाम के इतिहास और
वर्तमान में जितना भी इल्म, ज्ञान, अन्वेषण इत्यादि मौजूद है, सब इन 14 ज़ात
की चौखट और घर से मिला है। इस्लामी फ़िक़्ह (Islamic Jurisprudence) के
चारों इमाम (अबू-हनीफ़ा, शाफ़ई, हम्बल, मालिक) ने इसी दरवाज़े से इल्मे शरीयत
की ख़ैरात पाई। आप चारों इमाम इमाम जाफ़र अस-सादिक़ अलैहिस्सलाम के शागिर्द
थे। हज़रत मारूफ़ करख़ी (रह.) ने इमाम जाफ़र के पोते इमाम अली रज़ा के हाथ पर इस्लाम क़ुबूल किया और दीन की तरबियत पायी।
इस्लाम क़ुबूल करने के कुछ वक़्त बाद आप अपने माँ-बाप के पास गए। आपके व्यवहार से प्रभावित होकर माता-पिता ने भी इस्लाम क़ुबूल कर लिया।
हज़रत
मुहम्मद बिन तूसी फ़रमाते है कि एक बार मैंने हज़रत मारूफ़ करख़ी (रह.) के
जिस्म पर एक निशान देखा और पूछा कि यह निशान कल तक तो नहीं था ! हज़रत मारूफ़
करख़ी (रह.) ने फ़रमाया कि कल रात हालत-ए-नमाज़ में मुझे मक्का मुअज़्ज़मा जाकर
तवाफ़-ए-काबा का ख़्याल आया और वहाँ पहुँचकर जब मैं तवाफ़ के बाद ज़म-ज़म के
कुएँ के पास गया तो मेरा पैर फिसल गया, यह उसी का निशान है ! (याद रहे कि
बग़दाद से मक्का की दूरी लगभग 800 मील है लेकिन अल्लाह के वली तो पलक झपकते
ही कहाँ से कहाँ होते है !!)आप कुछ लोगों के साथ सफ़र कर रहे थे। रास्ते में
देखा कि लोगो का एक समूह गाने-बजाने-नाचने और शराब पीने में बुरी तरह
व्यस्त था। आपके साथियों ने दरख़्वास्त की कि इनके लिए "बद-दुआ" कर दीजिए।
आपने अल्लाह की बारगाह में हाथ उठाकर फ़रमाया -"ऐ अल्लाह! जैसे ऐश-ओ-आराम
तूने इनको आज दिए हैं, आगामी ज़िन्दगी में इससे भी ज़्यादा ऐश दे !" यह
"दुआ" सुनकर उनके साथी और नाचने-गाने वाले लोग हैरान हो गए। नाचने-गाने
वाले लोग हज़रत मारूफ़ करख़ी (रह.) से प्रभावित हुए और उन्होंने अपने बुरे
कामों से तौबा करते हुए इस्लाम क़ुबूल कर लिया। हज़रत मारूफ़ करख़ी (रह.) ने
वहां लोगो को सम्बोधित करते हुए कहा कि "जो शीरनी (मिठास) से मर सकता है,
उसको ज़हर देने की बात क्यों करते हों !"
हज़रत सरी सक़ती (रह.) आपके
शागिर्द और मुरीद थे। वो फ़रमाते हैं कि एक बार हज़रत मारूफ़ करख़ी (रह.) ने ईद
के दिन एक यतीम बच्चे को उदास देखा। आप ने फ़रमाया- "बेटा! उदास क्यों हो?"
बच्चा बोला मेरे पिता नहीं हैं और आज ईद का दिन है। अगर वो जीवित होते तो
मुझे नए कपडे दिलाते " यह सुनकर हज़रत मारूफ़ करख़ी (रह.) तड़प उठे और बोले तू
फ़िक्र मत कर, मैं कुछ इंतेज़ाम करता हूँ। हज़रत मारूफ़ करख़ी (रह.) कुछ खजूरें
उधार लाकर सड़क पर बेचने लगे। इतने में हज़रत सरी सक़ती (रह.) वहाँ से गुज़रे
और अपने पीर से पूछ बैठे- "हज़रत ये सब क्या है ?" जवाब मिला कि खजूर उधार
लाया हूँ, इसे बेचकर असल कीमत दुकानदार को दे दूंगा और जो मुनाफ़ा होगा उससे
इस यतीम बच्चे के कपड़े सिला दूँगा !!" जवाब सुनकर हज़रत सरी सक़ती (रह.) ने
फ़रमाया कि इतनी परेशानी उठाने की आपको कोई ज़रुरत नहीं है, मैं आपका
ख़ादिम हूँ न; अल्लाह रसूल के फ़ज़्ल से सब इंतेज़ाम कर दूँगा। हज़रत सरी सक़ती
(रह.) ने दुकानदार को खजूर वापस कर दी और बच्चे को कपडे भी दिलाये।
हज़रत
मारूफ़ करख़ी (रह.) के मामू शहर में बहुत इज़्ज़तदार कोतवाल थे। उन्होंने आपको
इस हालत में देखा कि एक कुत्ता आपके पास बैठा हुआ है। हज़रत मारूफ़ करख़ी
(रह.) उस कुत्ते के साथ बैठकर इस तरह खाना खा रहे हैं कि एक निवाला कुत्ते
को खिलाते हैं और फिर दूसरा निवाला खुद खाते हैं!! यह देखकर मामू में कहा
कि तुमको "हया" नहीं आती कि कुत्ते को खाना खिला रहे हो ! शहर में हमारी भी
कुछ इज़्ज़त है, कम से कम उसका ही ख़्याल कर लो ! यह सुनकर हज़रत मारूफ़ करख़ी
(रह.) ने बड़ी नरमी से फ़रमाया, "हया की वजह से ही इस कुत्ते को खाना खिला
रहा हूँ मामू जान !" इतने में एक परिन्दा हज़रत मारूफ़ करख़ी (रह.) के हाथ पर
आकर बैठ गया और उनके हाथ का खाना खाने लगा। अचानक परिंदे की नज़र आपकी खुली
पिण्डलियों (पैर के पास) पर चली गयी और उस परिंदे ने "हया" के मारे अपने
पँखों से अपनी आँखें ढक लीं। ये माजरा हज़रत मारूफ़ करख़ी (रह.) के मामू भी
देख रहे थे। हज़रत मारूफ़ करख़ी (रह.) ने मामू से फ़रमाया कि "जो रब की हया
करते हैं तो रब की मख़लूक़ उनकी हया करती है।"
हज़रत मारूफ़ करख़ी (रह.) की तालीम:
1.
हज़रत मारूफ़ करख़ी (रह.) के मुताबिक़ तीन चीज़ें शुजाअत का मज़हर (वीरता की
अभिव्यक्ति) हैं: पहली, वफ़ा का वादा करना, दूसरी, ऐसा शुक्रिया जिसमे
दोस्त-दुश्मन का फर्क न हो और तीसरी, बिना तलब के अता करना।
2. हज़रत
मारूफ़ करख़ी (रह.) ने फ़रमाया कि नफ़्स की पैरवी ख़ुदा की गिरफ़्त है (यानि नफ़्स
के ग़ुलामों पर अल्लाह की पकड़ है) ! लेकिन जो ख़ुदा को याद करता है तो वो
ख़ुदा का मेहबूब हो जाता है। और ख़ुदा जिसको महबूब बना ले उस पर ख़ैर के
दरवाज़े खोल देता है और शर (आफ़त, हलाकत) के दरवाज़े बंद कर देता है।
3. हज़रत मारूफ़ करख़ी (रह.) ने फ़रमाया कि लगू बातें (Falsehood) गुमराही की दलील हैं और ग़ाफ़िल न होना हक़ीक़त-ए-वफ़ा की निशानी है।
4.
फ़रमाया कि अच्छे और नेक अमल के बिना जन्नत की ख़्वाहिश करना, सुन्नत की
पैरवी के बिना मुहम्मद (सल.) की शफ़ाअत की उम्मीद करना और ना-फ़रमानी के बाद
रहमत की तमन्ना करना हिमाक़त (मूर्खता) है!
5. फ़रमाया कि हुब्बे
दुनिया (भौतिकवाद की मुहब्बत) से किनारा करने वाला हुब्बे इलाही से ज़ायका
हासिल करता है लेकिन रब की मुहब्बत भी रब के करम से नसीब होती है।
6. फ़रमाया कि आरेफ़ीन खुद सरापा दौलत है, उन्हें किसी दौलत की हाजत नहीं !
हज़रत मारूफ़ करख़ी (रह.) की हिदायत
हज़रत
सरी सक़ती (रह.) ने फ़रमाया कि हज़रत मारूफ़ करख़ी (रह.) ने मुझे यह हिदायत
फ़रमाई कि जब तुम्हे कुछ तलब करना हो तो इस तरह तालाब किया करो, "ऐ अल्लाह!
बा-हक़्क़े हज़रत मारूफ़ करख़ी (रह.) मुझे वो चीज़ अता फरमा " फिर इंशाअल्लाह वो
चीज़ तुझे मिल जाएगी।
हज़रत सरी सक़ती (रह.) से रिवायत है कि
मैंने आपको ख़्वाब में इस तरह देखा कि आप अल्लाह के अर्शे आज़म पास हैं और आप
पर बे-होशी छायी हुई है और पूछा जा रहा है कि यह कौन है? इस पर फ़रिश्तों
ने कहा कि ऐ रब! तू हमसे ज़्यादा जानता है। इस पर ग़ैब से आवाज़ आई कि
"यह मारूफ़ करख़ी है और हमारे इश्क़ ने इसे बे-ख़ुद बना दिया है और अब हमारे
दीदार के बग़ैर इसको होश नहीं आ सकता !"
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