इसी साल की शुरुआत में भारतीय विज्ञान कांग्रेस के 100वें अधिवेशन के उद्घाटन के दौरान प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में भारतीय समाज में विज्ञान के निम्न स्तर पर चिंता जताई थी। वास्तव में हमारा चिंतन, कार्यशैली और किर्यांवन आज़ादी के छ: दशक बाद भी पूर्ण रूप से अवैज्ञानिक है। विज्ञान कांग्रेस में मौजूद राष्ट्रपति ने भारतीय विज्ञान में नोबेल पुरस्कार के अभाव को अपने ललाट की सिकुडन से ज़ाहिर किया। इससे पूर्व जस्टिस काटजू ने भारतीय समाज को आईना दिखाते हुए कहा था कि भारत की नब्बे प्रतिशत जनता बुड़बक है।
उपरोक्त बातें भारतीय समाज को उसकी धरातलीय वास्तविकता से अवगत कराती हैं। आज संयुक्त राज्य अमेरिका को विकास का अलमबरदार माना जाता है। इसकी कई वजह हैं, जिसमें एक है -- अमेरिकी संविधान निर्माताओं का दर्शन और विवेक। अमेरिकी संविधान में 'विज्ञान' की महत्ता को अनुच्छेद 1(VIII)(8) के रूप में बहुत पहले ही स्थान मिल चुका था लेकिन भारत में ऐसा नही हो सका और भारतीय समाज को 42 वें संशोधन तक इन्तेज़ार करना पड़ा। इसका कारण यह नहीं था कि हमारे संविधान निर्माता विवेकहीन थे जो आज़ाद भारत में विज्ञान के किरदार और जरूरत को समझ नहीं पाए!! वास्तव में, आज़ादी के समय ग़ुलामी के पंजों से निकले कमज़ोर और प्राणहीन भारत के सामने सबसे बड़ा प्रश्न यह नहीं था कि खाना खाने से पहले हाथ धोने चाहिए या नहीं ! बल्कि सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि क्या हम लाखों भूखे पेटों के लिए दो वक़्त की रोटी और तन पे कपडा जुटा पाएंगे या नहीं? कहीं ऐसा न हो कि सैकड़ों बरस का आज़ादी का यह संघर्ष व्यर्थ चला जाये!
विज्ञान का किसी भी व्यक्ति, समाज अथवा राष्ट्र के आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक पहलुओं से गहरा ताल्लुक है। अच्छा सकल घरेलू उत्पाद, संपन्न समाज, दक्ष राजनैतिक तंत्र - सब विज्ञान पर निर्भर करता है। यूनानी दार्शनिक प्लेटो ने कहा था कि राजनीति 'सर्वश्रेष्ठ विज्ञान' है। अफलातून के अनुसार राज्य की बागडोर उस व्यक्ति के हाथ में होनी चाहिए जिसका मस्तिष्क विज्ञान और तर्क से परिपूर्ण हो। उन्होंने पश्चिम जगत का पहला विश्विद्यालय 'एकेडमी' खोला जो कि पूरी तरह मानव समाज और उसके राजनैतिक ताने-बाने के अनुसन्धान को समर्पित था। यह एक रोचक और विचारणीय तथ्य है कि प्लेटो ने उस संस्थान के प्रवेश द्वार पर स्पष्ट रूप में लिखवा दिया था कि 'जिसको गणित का ज्ञान नहीं है उसे 'एकेडमी' में प्रवेश की अनुमति नहीं है।' प्लेटो ने दर्शाया कि राज्य को चलाने के लिए विज्ञानी सोच परमावश्यक है किन्तु आज स्तिथि बिलकुल उलटी है! आज हमारे समाज का नेतृत्व करने वाले ही गणित तथा विज्ञान में अल्पज्ञ होते हैं। राज्य के व्यापार के निर्वाह को 'अंगूठा-छाप' नीतियों का सहारा लिया जाता है।
इसी प्रकार अरस्तू ने अपने 'सर्वोत्तम राज्य सिद्धांत' में शासक की वैज्ञानिक शिक्षा पर बल दिया था। समाज को समझने का अरस्तू का प्रयोगात्मक सिद्धांत अत्यंत वैज्ञानिक था। उनहोंने दुनिया भर के 159 संविधानों का अध्धयन किया था। इसके फलस्वरूप ही अरस्तू ने कहा था कि एक वैज्ञानिक मस्तिष्क ही समाज को स्थिरता दे सकता है। इस सम्बन्ध में अरस्तू की "शिक्षानीति" पठनीय है।
20 वीं शताब्दी में पश्चिमी देशो ने अभूतपूर्व तरक्की की है। इसकी वजह वहां आई औद्योगीकरण की बयार है। औद्योगिक उत्पादन का कई गुना बढ़ जाना वहां के कारखानों में उत्पादन के वैज्ञानिक तरीकों पर निर्भर करता है। औद्योगीकरण के शुरूआती दौर में कारखानों को अनगिनत समस्याओं से जूझना पड़ा। इन समस्याओं का समाधान प्रबंधन वैज्ञानिक फ्रेडरिक विन्सलो टेलर ने अपने "वैज्ञानिक प्रबंधन सिद्धांत" में दिया था जिसकी वजह से पश्चिमी देश आज हमसे 'बरसों' आगे हैं।
भारत में हालात बहुत बुरे हैं। आज़ादी के वक्त हमारी साक्षरता 15 प्रतिशत थी जो आज बढ़कर 74 प्रतिशत हो गयी है। हम साक्षर तो हो गये हैं लेकिन 'वैज्ञानिक' नहीं! वैज्ञानिक होने का अर्थ गणित और भौतिकी का केवल ज्ञान भर होने से बहुत आगे है। समय की नज़ाक़त ये है कि हम विज्ञान को अपने जीवन में अपनाएं। विज्ञान का साग़र कहे जाने वाले वेद-पुराण-कुरआन का जो सन्देश था, वो हमने भुला दिया है। वैज्ञानिक जीवन से दूरी बनाना हमारे लिए निश्चित तौर पर घातक सिद्ध हुआ है। मनुष्यों में दलित-ब्राह्मण तथा हिन्दू-मुसलमान का फर्क करना कौन सी शिक्षा और धर्म का हिस्सा है? यह निश्चित तौर पर अवैज्ञानिक और अधार्मिक है। कुछ लोग मानते हैं कि धर्म का बोझ ढोना भारत के पिछड़ेपन का बड़ा कारण है। किन्तु यह सरासर ग़लत है। यदि धर्म को 'धर्म' माना जाये तो यह कदापि बोझ नहीं हो सकता। प्रत्येक धर्म पूर्ण रूप से वैज्ञानिक है। यदि कुछ है तो वो हमारी सोच है आज भी दकियानूसी और अवैज्ञानिक है। हमारी सोच आज हमें इस और अग्रसर नहीं करती कि हम खाद्द सुरक्षा और ग़रीबी उन्मूलन के वैज्ञानिक उपाय किस तरह सुझाएँ बल्कि हमें इस ओर बाध्य करता है कि किस तरह एक दलित को मंदिर में घुसने से रोका जाये!!

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