मैत्री, प्रेम, और अहिंसा मनुष्य के जन्मजात गुण हैं; एक की सहाएता तथा
प्रेम के बिना दूसरा इंसान अपूर्ण है. सौहार्द की इस शैली को सरल भाषा में
'भाईचारा' कहते हैं. इस भाईचारे की बिमाएं केवल एक घर, मोहल्ले, नगर अथवा
मुल्क तक सीमित नही रहती अपितु मुल्क के बहार भी वे आत्मीयता का
अहसास कराने में सदैव तत्पर रहती हैं,.ठीक उसी तरह जैसे विशाल सूरज की
किरणे बिना किसी भेदभाव के ज़मीन पर उगने वाले हर शजर को अपनी ऊर्जा से
हरा-भरा रखती हैं,चाहे वो किसी देश में उगता हो. सौहार्द और प्रेम के
प्रचार हेतु प्रेम पुजारियों द्वारा अनेक तरीके अपनाये जाते रह हैं. कभी
भगवान राम ने शबरी के झूठे बेर खाकर समाज को नयी रह दिखाई तो कभी एक गाल पर
तमाचा पड़ने के बाद दूसरा गाल भी आगे बढ़ाने की बात कहकर ईसा मसीह ने
भाईचारे की नयी समीकरण लिखी. कभी रहीम जैसे भक्त भी इस दुनिया में आये तो
कभी मीराबाई 'प्रेम की दीवानी' बनीं. महत्वपूर्ण बात यह है कि इनका पैग़ाम
ज़मीन के किसी एक खित्ते में महदूद न रहकर, सम्पूर्ण विश्व में शंखनाद की
भांति गूंजा.
यदि इन प्रेम के पुजारियों की एक सूची बनायी जाये तो
उसमे संगीत से जुड़े महारथियों का अहम् स्थान होगा. कुंदन लाल सहगल से लेकर
मुहम्मद रफ़ी, लता मंगेशकर, किशोर, मेहदी हसन और यहाँ तक कि ऋचा शर्मा जैसे
नवागंतुकों का योगदान भी इस मैत्री में सराहनीय हैं. या दूसरे शब्दों में
यूँ कहिये कि 'वसुधैव कुटुम्बकम' कि सार्वभौमिक भावना को पूर्ण रूप से जीने
का श्रेय इन्हीं संगीतार्थियों को जाता है. ऐसे ही एक प्रेम पुजारी थे - उस्ताद नुसरत फ़तेह अली खान.
उस्ताद नुसरत फ़तेह अली खान का जन्म १३ अक्टूबर १९४८ को फैसलाबाद,
पाकिस्तान में हुआ. संगीत की आरंभिक शिक्षा पिता से प्राप्त करने के
पश्चात नुसरत ने केवल सात साल की उम्र में अपना 'मैत्री अभियान' शुरू कर
दिया था. 'वैश्विक मैत्री' की ज्वाला दिल में लिए वह कभी अफ्रीका के सहराओं
में घूमे तो कभी रूस के गलियारों में. पश्चिमी जगत के समक्ष उन्होंने कठोर
कहे जाने वाले इस्लाम की एक उन्मुक्त छवि पेश की. नुसरत सूफी संगीत के
प्रचारक थे जिसका पूर्ण आधार भारतीय शास्त्रीय संगीत था. राग यमन, कल्याण,
भैरवी, शंकर, मारवा जैसी असंख्य विधाएं उनके संगीतोत्कर्ष का कारण बनीं. लास्ट टेम्पटेशन आफ क्राइस्ट, मस्त-मस्त, नाइट सोंग, स्टार राइज़, सोलाम्न प्रेयर, ब्लड डायमंड तथा डैडमैन वाकिंग
सरीखी फिल्मों अथवा एल्बमों में सम्पूर्ण पश्चिमी संगीत उनके समक्ष
नतमस्तक होता नज़र आया. इतना ही नहीं, टाइम पत्रिका ने नवम्बर २००६ में
उन्हें १२ प्रभावशाली व्यक्तियों की सूची में रखा था.
यदि भारत- पाक
मैत्री की बात करें तो उनके अनुसार एक दिल है तो दूसरा दिमाग. राजकपूर
द्वारा अपने बेटे ऋषि कपूर का विवाह निमंत्रण मिलने पर वह पहली बार भारत
आये थे तो उन्होंने कहा था: 'यूँ तो मुझे दुनिया के लगभग हर मुल्क में जाने
पर ख़ुशी होती है लेकिन जो ख़ुशी मुझे हिन्दोस्तान आने पर मिली है, उसे मैन
बयां नहीं कर सकता; मुझे पूरा यकीन है कि सिर्फ फनकार ही दोनों मुल्कों को
जोड़ सकतें हैं'. पाकिस्तानी होने के बावजूद उन्होंने ए आर रहमान के साथ
एल्बम 'वन्दे मातरम' में संगीत दिया था जो १९९७ में स्वतंत्रता कि स्वर्ण
जयंती पर भारत में रिलीज़ हुई थी. इसके अलावा, दोनों देशों के बीच इस
मैत्रीपूर्ण उद्देश्य को लेकर उन्होंने गीतकार जावेद अख्तर के साथ संगम
एल्बम निकाली जो दोनों देशो में सराही गयी. इतना ही नही, कच्चे धागे, और प्यार हो गया, धड़कन, कारतूस, रफ़्तार, बेंडिट क्वीन
जैसी फिल्मों में संगीत देकर भाईचारे और सौहार्द के नये आयाम स्थापित
किये. अपनी ४८ साल कि उम्र में ४१ साल मैत्री और प्रेम कि सेवा में लगा
दिए. उनकी एक दिली तमन्ना थी कि वह स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर को
पाकिस्तान के असेम्बली हाल में बुलाएं और उनको अपने वतन की भूमि पर सुनें.
लेकिन म्रत्यु ने किसको छोड़ा है? और इस बार भी वही हुआ जिसका डर था...
संगीत के आकाश का एक सितारा और टूट गया !


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