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भ्रष्टाचार का निदान

भुखमरी और ग़रीबी के बाद देश की सबसे बड़ी समस्या भ्रष्टाचार है। बल्कि मैं तो यही कहूँगा कि भारत के आर्थिक, राजनैतिक और सामाजिक पिछड़ेपन  की बस एक यही वजह है, जो कभी हमारे सामने विदर्भ में किसानो की आत्महत्या के रूप में आती है तो कभी दिल्ली स्थित योजना आयोग के शौचालयों के नवीनीकरण में लगे पैंतीस लाख के रूप में!- उसी दिल्ली में जहाँ सैकड़ों की आबादी रेल की पटरियों और जमना के किनारे पर  में शौच  करती है।

पिछले छ: दशक से भारत में भ्रष्टाचार के मामले पर बहस जारी है।कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में बापू ने कहा था- 'अगर कांग्रेस भ्रष्टाचार से मुक्त हो जाये तो हमें स्वराज प्राप्ति के लिए किसी के आगे हाथ फैलाने की कोई आवश्यकता नहीं है।' मगर अफ़सोस आज भी स्थिति ज्यों की त्यों बनी हुई है। और कांग्रेस ही क्यों ? क्या राजग की पार्टियाँ दूध की धुली हैं! 1998-2003 के दौरान राजग ने देश की खाद्द सुरक्षा के साथ जो खिलवाड़ किया है उसका अंदाज़ा लगाना बहुत मुश्किल है। इस सन्दर्भ में सुख्यात अर्थशास्त्री उत्सा पटनायक का "रिपब्लिक आफ  हंगर" पठनीय है।

भ्रष्टाचार पर मातम करने की बजाय यदि इसके निवारण की बात की जाये तो कदाचित भविष्य की पीढ़ियों को एक बहतर भारत मिल सके। सबसे पहले देश के हर नागरिक को अपनी  सोच का नया खाका खींचना पड़ेगा। बकौल बापू- 'यदि आप परिवर्तन देखना चाहते हैं तो पहला परिवर्तन आप स्वयं बनें।' यदि हमारी सोच में 'लोच' नहीं तो सारे अधिनियम, क़ायदे-क़ानून पानी में डाली गयी उस रेत की भांति हैं जिससे उन्नति का कोई सेतु बनाना असंभव है और जिसके ज़रिये देश को प्रगति के दुसरे छोर तक ले जाया सके। भ्रष्टाचार तो भ्रष्टाचार ही है, चाहे एक रूपये का ही क्यूँ न हो।और ऐसे भ्रष्टाचार में कुछेक प्रतिशत को छोड़कर पूरा भारत आकंठ डूबा है। बिजलीघर में बिल जमा करते वक़्त लम्बी पंक्ति में ना लगकर दरवाज़े पर तैनात कर्मचारी को दस रूपये देकर जल्दी बिल जमा करवाना- हम में से बहुत लोगों की जिंदगी का हिस्सा है। यह तो मासिक उलटफेर है, दिन में तो न जाने कितने ऐसे मरहलों से हम जानबूझकर गुज़रते हैं।

याद रहे कि हमारी सोच ही हमारी नीतियों और जीवन को तय करती है। जब कोई मंत्री साहब या प्रशासनिक अधिकारी किसी सरकारी स्कूल का उद्घाटन करते हैं तो मंच पर खड़े होकर बखान करते हैं कि हमारे इस स्कूल से पढकर बच्चे चन्द्रमा तक पहुचेंगें और देश का नाम रोशन करेंगें।विरोधाभास और कडवी सच्चाई ये है कि अधिकारी या मंत्री जी इस बात को गवारा नही करते कि उनके 'हाई -प्रोफ़ाइल' बच्चे भी ग़रीब बच्चों के साथ उसी स्कूल में पढ़ें।क्या वे नहीं चाहते कि उनका बच्चा भी चाँद तक पहुंचे! वो तो सिर्फ भाषण होता है, हकीकत नहीं। उनकी नज़र तो डीपीएस जैसी मंहगी दुकानों पर लगी होती है।  मेरा मानना है कि यदि देश का हर अधिकारी और मंत्री अपने बच्चों की सिर्फ आरंभिक शिक्षा ही इन स्कूलों में कराएँ तो देश का प्रशासन इन विद्यालयों की तरफ विशिष्ट ध्यान देगा और इससे देश की शिक्षा प्रणाली में अभूतपूर्व सुधार आयेगा। बस सोच बदलने की देर है। इस्लाम के अंतिम खलीफा हज़रत अली के अनुसार-'अपनी सोच को पानी की बूंदों की तरह निर्मल और स्वच्छ रखो क्योंकि जिस तरह पानी की बूँद बूँद से सागर बनता है, उसी तरह मनुष्य की सोच से ईमान बनता है'

भ्रष्टाचार उन्मूलन का एक दूसरा बड़ा क़दम है- वर्तमान से और अधिक सशक्त न्यायपालिका। देश के न्यायालयों में सीमा से अधिक मामले लंबित पड़े हैं। कारण यह है कि हमारे पास पर्याप्त मानव संसाधन नहीं है।न्यायधीशों और अन्य कर्मचारियों की कमी की वजह से देश की न्यायपालिका लकवाग्रस्त है। 42वें संशोधन अधिनियम-1976 के तहत संसद में यह बात कही गयी थी कि भारतीय प्रशासनिक  सेवाओं की तर्ज़ पर देश में अखिल भारतीय न्यायिक न्यायिक सेवाओं को आरम्भ किया जाना चाहिए ताकि हम लोकतंत्र को हम उसका हक दे सकें।लेकिन यह मामला भी आजतक ठन्डे बसते में दाल दिया गया है। सरकार और विपक्ष को चाहिए कि साठ  साल पुराने कार्टून पर ध्यान न देकर इस नये मामले पर ध्यान दें।

तीसरे, भ्रष्टाचार को मिटाने का सबसे महत्वपूर्ण तरीका  यह है कि भारत की इकलौती अन्वेषण संस्था 'सीबीआई' को सरकारी प्रभाव से मुक्त करके संवैधानिक इकाई बना देना चाहिए अर्थात 'स्वायत्त' कर देना चाहिए। संवैधानिक संस्थाओं की गुणवत्ता तथा उत्कृष्टता की मिसाल हमारे पास संघ लोक सेवा आयोग जैसी संस्थाओं के रूप  में है। यदि सीबीआई को स्वायत्त कर दिया गया तो  अन्ना हजारे को मशक्कत करने की कोई ज़रुरत नही होगी।उच्चतम न्यायालय की निगरानी में जिन मामलों पर सीबीआई ने  खून-पसीना बहाया है, उनके परिणाम बिना किसी धुर्वीकरण के हमारे समक्ष आयें हैं, किन्तु जहाँ सरकार का हस्तक्षेप बढ़ा है, वहां अन्याय को और ज्यादा फरोग़  मिला है।.

मैथिलीशरण गुप्त के शब्दों में,
भागो अलग अविचार से, त्यागो कुसंग कुरीति का
आगे बढ़ो निर्भीकता से,  काम  है क्या भीति  का
चिंता न विघ्नों की करो, पाणी ग्रहण कर नीति का 
सुर तुल्ये अजरामर बनो, पीयूष पीकर प्रीति का।

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