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एक सूअर और उसका इन्क़लाब (जॉर्ज ऑरवेल)


जॉर्ज ऑरवेल  की रचना एनिमल फार्म  से 

1. मैनर फार्म के श्री जोन्स ने रात भर के लिए मुर्गी के दरबे पर ताला लगा दिया था, लेकिन वह इतने [शराब] पिए हुए थे कि वह दरबे की जालियों को बंद करना शायद ही याद रख पाते. उनकी लालटेन से निकलने वाली रोशनी का घेरा इधर-उधर हिल रहा था , और वह दालान से लड़खड़ाते हुए कमरे में बिछी चारपाई तक पहुंचे जहाँ श्रीमती जोन्स पहले से ही खर्राटे भर रहीं थीं . 

 2. जैसे ही कमरे की बिजली (रोशनी) बंद हुई , पूरी फार्म बिल्डिंग में हलचल और परिंदों के पंखों की फड़फड़ाहट होने लगी. दिन में यह बात चारो तरफ़ फैल चुकी थी कि बूढ़ा सूअर जिसका नाम मेजर है और जो क़ाबिल है, उसने गुज़री रात एक अजीबो-ग़रीब सपना देखा था और वह उस सपने के बारे में दूसरे जानवरों को बताना चाहता था. जानवरों के बीच यह सहमती हुई कि श्री जोन्स जब वहां से चले जायेंगे तो उन सब जानवरों को गोदाम में मिलना है. जानवरों के बीच बूढ़े सूअर की इतनी ज़्यादा इज्ज़त थी कि वे रात में अपनी एक घंटे की नींद छोड़ने को तैयार थे ताकि वे उस बात को सुन पायें जो बूढ़ा सूअर यानि मेजर उनसे कहना चाहता था. 

 3. अब सभी जानवर [गोदाम में] मौजूद थे सिवाए बड़े काले चमकीले कोए मोसेस के. जो पिछले दरवाज़े के पीछे एक डाल पर सो गया. जब बूढ़े सूअर ने देखा कि सभी जानवर आराम से बैठ गए हैं और बहुत ध्यान से उसकी बात सुनने का इंतज़ार कर रहे हैं तो उसने अपना गला साफ़ किया और [बोलना] शुरू किया: 

"साथियों! आप पहले ही मेरे उस अजीबो ग़रीब सपने के बारे में सुन चुके हैं जिसे मैंने पिछली रात देखा था. लेकिन मैं अपने सपने पर बाद में आऊंगा. पहले मैं आपसे कुछ और कहना चाहता हूँ. साथियों, मैं नहीं सोचता कि मैं ज़्यादा महीनों तक आप के साथ रहूँगा और इससे पहले कि मैं मर जाऊं, मैं अपना फ़र्ज़ समझता हूँ कि आप तक वो ज्ञान पहुंचा दूं जो मैंने पाया है. मैंने एक लम्बा जीवन गुज़ारा है. मेरे पास सोचने का बहुत वक़्त रहा है क्यूंकि मैं अपने स्टाल (सूअर-घर) में अकेला रहता था और मैं सोचता हूँ कि मुझे आपसे कह देना चाहिए कि मैं इस धरती पर जीवन की प्रकृति और किसी भी जानवर को [अच्छी तरह] समझता हूँ. मैं इसी के बारे में आपसे बात करना चाहता हूँ. 

 4. साथियों, अब हमारी ज़िन्दगी की हक़ीक़त क्या है? आइये, हम इसका सामना करते हैं: हमारा जीवन निराशा से भरा, कठिन और छोटा है. हम पैदा होते हैं, हमें उतना ही खाने को दिया जाता है जितना कि हमारे जिस्म में सांस चलाता रहे (यानि हमें जिंदा रख सके) और हम में से जो इस लायक है कि कठिन परिश्रम कर सकें, उनको आख़िरी दम तक कठिन परिश्रम करने के लिए मजबूर किया जाता है. और उस लम्हे जब हमारा उपयोग ख़त्म हो जाता है तो हमें बुरी बेदर्दी से ज़िबह कर दिया जाता है. 

 5. लेकिन क्या यह क़ुदरत के निज़ाम का हिस्सा है? क्या यह इस वजह से है कि हमारी यह ज़मीन इतनी ग़रीब है कि यह उनके लिए एक बहतर ज़िन्दगी मुहय्या नहीं करा सकती जो इस पर रहते हैं ? नहीं, साथियों, हज़ार बार नहीं ! हमारा यह इकलौता फार्म दर्जन भर घोड़ों, बीस गायों, सैंकड़ो भेड़ों को पाल सकता है और वो भी पूरे सुकून और इज़्ज़त के साथ जिसके बारे में हम सोच भी नहीं सकते. फिर हम क्यूँ इतनी परेशान हालत में जिए जा रहे हैं ? क्यूंकि हमारी महनत से जो भी पैदा होता है उसका लगभग पूरा हिस्सा इंसानों द्वारा चुरा लिया जाता है. साथियों, यहीं हमारी सारी परेशानियों के जवाब हैं. और यह जवाब सिर्फ एक लफ्ज़ में इकठ्ठा हो जाता है, और लफ्ज़ “आदमी” है ! आदमी ही हमारा असली दुश्मन है . आदमी को हटा (ख़त्म कर) दो, हमारी भुखमरी और overwork (ज़रुरत/ ताक़त से ज़्यादा काम लेना) की समस्या हमेशा के लिए ख़त्म हो जाएगी. 

 6. आदमी इकलौती रचना है जो बिना पैदा किये चीज़ों का उपभोग (ख़र्च, इस्तेमाल) करता है. वह दूध नहीं देता, वह अंडे नहीं देता. वह इतना कमज़ोर है कि हल भी नहीं खींच सकता. वह इतना तेज़ दौड़ भी नहीं सकता कि ख़रगोश को भी पकड़ ले. फिर भी वो सारे जानवरों का मालिक है. वह उनको काम पर लगाता है और वापस उनको सिर्फ उतना ही देता जिससे कि वे भूख से बच जाएँ, बाक़ी वह अपने लिए रख लेता है. 

हमारी महनत मिट्टी (ज़मीन) को जोतती है, हमारा गोबर इसे उपजाऊ बनाता है, और फिर भी हम में कोई भी अपनी खाल से भी ज़्यादा का मालिक नहीं है. ऐ गायों, तुमने कितने गेलन दूध पिछले साल दिया है और उस दूध का क्या हुआ जिसे तुम्हारे ताक़तवर बछड़ों का पालन-पोषण करना चाहिए था? उस दूध की हर बूँद हमारे दुश्मनों के गले से होकर उतरी है ! और ऐ मुर्गियों तुम ! तुमने कितने अंडे पिछले साल दिए ? और कितने अण्डों से चूज़े बनने दिए गए ? बाक़ी बचे अंडे बाज़ार भेज दिए गए ताकि जोन्स और उसके लोगों को पैसे मिल जाएँ ! और घोड़ी तुम ! तुम्हारे उन चार बच्चों का क्या हुआ जिन्हें तुम्हारे बुढ़ापे में तुम्हारा सहारा और राहत का सामान होना चाहिए था. उनमे से हर एक को एक साल की उम्र में ही बेच दिया , अब तुम उन्हें दोबारा नहीं देख पाओगी. चार बार की तुम्हारी बच्चे जनने की पीड़ा (दर्द) और खेत में तुम्हारी महनतों के बदले तुम्हारे पास क्या है सिवाय [रहने के लिए] एक अस्तबल और रोज़मर्रा के चारे (भूसा, घास आदि) के ? 

 7. तब, साथियों, क्या यह बिलकुल साफ़ नहीं है कि हमारी ज़िन्दगी की सारी परेशानियाँ आदमी की तानाशाही से सामने आती हैं? सिर्फ़ आदमी से छुटकारा पा जाओ और हमारी महनत की पैदावार हमारी होगी. लगभग एक रात में हम मालदार और आज़ाद हो सकते हैं. तब हमें क्या करना चाहिए? क्यूँ, दिन-रात काम करना ! इंसानों की नस्ल को उखाड़ने के लिए जिस्म और जान से जुट जाओ. साथियों ! 

तुम्हे मेरा पैग़ाम है कि तुम विद्रोह (बग़ावत) करो ! मैं नहीं जानता कि इन्क़लाब कब आयेगा. यह एक हफ़्ते में आ सकता है या सौ साल में, लेकिन मैं जानता हूँ कि देर-सवेर न्याय होकर रहेगा, मैं यह इतने साफ़ तौर पर जानता हूँ जितना कि यह पुआल मेरे पेरों के नीचे साफ़-साफ़ दीखता है. साथियों, अपनी आँखें उस [विद्रोह] की तरफ़ गढ़ा लो, अपनी ज़िन्दगी छोटी-छोटी याददाश्त में. और सबसे ऊपर यह कि मेरे इस पैग़ाम को उन तक पहुंचाओ जो तुम्हारे बाद आयें ताकि आने वाली नस्लें इस संघर्ष को आगे ले जाएँ, जब तक कि वे जीत न जाएँ ! 

 8. और साथियों, याद रखो कि तुम्हारी प्रतिज्ञा (क़सम) कमज़ोर न हो जाये. कोई बहस आपको अपने रस्ते से न भटका पाए. उनकी बात कभी न सुनना जब वे कहें कि आदमियों और जानवरों के हित समान हैं , एक की खुशहाली ही दूसरे की ख़ुशहाली है. यह सब झूठ है . आदमी अपने अलावा किसी के हित में काम नहीं करता. और हम जानवरों के बीच संघर्ष में बेजोड़ एकता और बेजोड़ दोस्ती होनी चाहिए. सारे इन्सान हमारे दुश्मन हैं और सारे जानवर हमारे दोस्त हैं !

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