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ख़ानक़ाही इस्लामी तसुव्वुफ़ का रंग


क़ुरान में लिखा है कि अल्लाह ने इस कायनात को "कुन" कहकर पैदा फ़रमाया. "कुन" यानि "हो जा" ! 

अब सवाल उठता है कि "कुन" में ऐसा क्या था जिससे अल्लाह की खल्क़ की इब्तिदा हुई?

इस्लाम के क्लासिकल लिटरेचर जिसका फ़िरकाबंदी या गुटबंदी से कोई लेना देना नहीं है, उसमे लिखा है कि कुन में दो वर्ण (हर्फ़/लैटर) "काफ़" और "नून" हैं. 

काफ़ की मुराद 'किताब' से है और नून की मुराद "नूर" से है. किताब यानि अल्लाह की किताब जिसे हम क़ुरान कहते हैं और नूर यानी "नूर-ए-मुहम्मदी" (सल.) !

किताब और नूर जब मिलते हैं तो कुन बनते हैं और फिर अल्लाह की तमाम खल्क़ (सृष्टि) वजूद में आती है. 

अब किताब और नूर किस बात को दर्शाते हैं ? 

किताब का ताल्लुक़ "इल्म" से होता है. इल्म-ए-नाफ़ेअ से. ऐसा इल्म जो अल्लाह की बारगाह में सर-बसुजूद हो.
और नूर की सादा तारीफ़ यह है कि वो अँधेरे को मिटाता है. हिदायत बख्शता है. 

मुहम्मद (सल.) पर नाज़िल हुई किताब और मुहम्मद, यही दीन है, इसे ही इब्तिदा जानिए, इसी को इंतेहा समझिए।  

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