मुझे नहीं मालूम कि बांगला की इस रचना का सन्दर्भ क्या है? यह क्यों लिखी गयी है. इसका मकसद क्या है? लेकिन मुझे इसमें एक चीज़ जो खींचती है वो इसका वो अंदाज़ है जिसे तसववुफ़ में "फ़ना फ़िल्लाह" यानि "अल्लाह की राह में फ़ना" हो जाना कहते हैं !
यह रचना उत्तरी बंगाल और असाम के इलाक़ों का एक लोक-गीत है. और बांग्लादेश के उन इलाक़ों का जहाँ रंगपुरी बोली जाती है. इसे "भवैया" लोक गीत कहते हैं. भवैया का सम्बन्ध भावना यानि अहसास से है. इसमें आत्ममूल्यांकन, प्रेम, सदभाव जैसे गुण शामिल हैं.
अब इसकी व्याख्या की तरफ चलते हैं. यह व्याख्या वास्तविक नहीं है. जो मुझे लगा है, मैंने लिख दिया है.
দিনে দিনে খসিয়া পড়িবে
রঙ্গিলা দালানের মাটি
গোসাঁইজি ... কোন রঙে?
दिने दिने खोशिया पोरिबे
रोंगीला डालानेर माटी,
गोशाई जी.... कौन रोंगे ?
Day by day, will crumble
Mud-walls of this pretty-colored house,
O priest ... In what color?
पहले शेर में वाइज़, मौलवी, पण्डित या हम जैसे उन लोगों को संबोधित किया गया है जो दुनियावी आन-बान-शान के लिए महनते करते हैं. जिस्म को सजाते हैं, उसे ख़ूबसूरत बनाते रहते हैं. ताकि दुनिया वाले हमारे रोब से प्रभावित हो और हमारी इज़्ज़त करें. हमारे जुब्बे, कुब्बे, शेरवानी और दूसरे आलिशान पौशाक से हमें परहेजगार जानें !! शायर कहता है यह सब गलत है क्यूँकि ख़ूबसूरत जिस्म का जो घर तू बना रहा है, बन्दे ! वो फ़ना हो जाना है. उसकी ख़ूबसूरत रंगीन दीवारें एक दिन ढह जानी हैं. फिर कैसा रंग-रोगन ??
यह शेर मुझे अल्लामा इक़बाल का वह शेर याद दिलाता है:
तू बचा बचा के रख इसे, तेरा आईना है वो आईना
कि शिकस्ता हो तो अज़ीज़तर है निगाहे आईना साज़ में
(यानि ऐ बन्दे ! अपने जिस्म को सवांरने में न लग ! खुदपरस्ती में वक़्त बर्बाद न कर. इसको बुलंद न समझ. और बुलंद न बना क्यूंकि यह अल्लाह को तब पसन्द आता है कि जब यह उसकी राह में शिकस्ता (बिखर हुआ/ टूटा हुआ) हो जाये, यार की मुहब्बत में टूट जाए. खुदपरस्ती नहीं ख़ुदापरस्ती में ज़िन्दगी बसर कर )
বাঁধিছেন ঘর মিছা
মিছা দ্বন্দ্ব মাঝে
গোসাঁইজি ... কোন রঙে?
बाँधीछन घर मीछा
मीछा द्वोंद्वा माझे,
गोशाई जी.... कौन रोंगे ?
Your house-framing is futile
Futile in midst of doubt,
O priest ... In what color?
इस शेर में शायर कहता है कि इस जिस्म की आराइश, ज़ाहिरी आराइश या शरीर-सौष्ठव (बॉडी बिल्डिंग) पर समय लगाना करना एकदम फ़िज़ूल है. क्यूँकि तू बातिन (hidden self) की आराइश से बेख़बर, ज़ाहिर को सजाने में लगा है. तेरे अन्दर घना अँधेरा है. शक और शुबह का अँधेरा है जो नूर का रंग देखने नहीं देता !! तू हक़ को नहीं पहचानता, तेरा कोई मुरशिद नहीं जो तुझे हक़ की शिनाख्त (पहचान) कराये !! जब तेरा अंदरुन इतना अंधेर है तो फिर बाहर से कैसा रंग-रोगन ??
বাল্য না কাল গেলো হাসিতে খেলিতে
যৈবন কাল গেলো রঙ্গে
আর বৃদ্ধ না কাল গেলো ভাবিতে চিন্তিতে
গুরু ভজিবো কোন কালে,
গোঁসাইজী ... কোন রঙে?
बालो ना काल गेलो हाशिते खेलिते
जोइबुन काल गेलो रोंगे
आर बृद्धो ना काल गेलो भाबिते चिन्तिते
गुरु भोजिबो कौन काले
गोशाई जी.... कौन रोंगे ?
Childhood went in laughter and play
Youth in dance and song
Old age in thinking and worry
When to chant of Guru,
O priest ... In what color?
बचपन हँसी-खेल में बीत जाता है, जवानी नाच-गाने और मस्ती मज़ाक़ में गुज़र जाती है, बुढ़ापा इस फ़िक्र में डूब जाता है कि अब आगे क्या होगा? तू सोचता है कि मेरी मौत के बाद मेरे घर-बार, दोस्त, रिश्तेदार सब कहाँ जायेंगे. मौत के बाद भी अगर कोई दुनिया होगी तो वहां मेरा क्या होगा !!!! सारी ज़िन्दगी इन्ही फ़िज़ूल के कारनामों में गुज़ार दी !! लेकिन कभी मुरशिद-ए-हक़ीक़ी यानि हज़रत मुहम्मद सल. की बारगाह में नहीं गया, उनके हुज़ूर नहीं रोया !! उनसे मुहब्बत नहीं की !! आक़ा की नाअत की फ़ुर्सत नहीं निकाली !!! आख़िरकार, ज़िन्दगी बेरंग बना ली !! अब इस बेरंगी में फिर कैसा बाहरी रंग-रोगन ??
वे तू फिकरां शिकरां फूँक दे
डूबे सूरज नू मिलदी सवेर
बन्दे "मेरी-मेरी" क्यूँ करे
तेरी "मैं" हो जाणी ढेर
जिन्द बुलबुला पानी दा है
एनु फुटदे न लग दी देर !!
Burn your all worries [of life and hereafter]
For, after every sunset, sun finds a new morning
O Slave ! Get rid of your "my and mine"
For your "ego" is destined [only] to decay
Life is just a bubble of water,
Soon you shall find it burst !!
[So, be with your Lord to get rid of all worries]
ये आख़िरी पंक्तियाँ पंजाबी नज़्म से ली गयी हैं जिन्हें इस विडियो में हर्षदीप ने गाया है. सार यह है कि ऐ बन्दे ! अपना जाप- जपना बंद कर. रब के नाम का जाप किया कर. उसी के आगे ख़ुद को समर्पित कर डाल. दुनिया और आख़िरत की फ़िक्र न कर. अभी ज़िन्दगी गुमराही और अँधेरे में गुजरी है तो क्या ग़म है. तौबा कर ले. तू रब को रहीम और रहमान पाएगा. उसकी रहमत से हर डूबे सूरज को नयी रौशनी और नया सवेरा मिलता है. तुझे भी मिलेगा [इंशा अल्लाह]. तू अपनी "अना" (अहंकार) को छोड़ दे. जल्द-से-जल्द छोड़ दे. क्यूंकि ये ज़िन्दगी पानी का बुलबुला है. और इसे फूटते हुए देर नहीं लगती.
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