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यौम-ए-आज़ादी पर

कुछ लोगों का कहना है कि पाकिस्तान की स्थापना के पीछे आयडियालॉजिकल फ़ाउनडेशन अल्लामा इक़बाल की थी !!! 

लेकिन दिलचस्प यह है कि 14 अगस्त को पाकिस्तान हर साल वजूद में आता है और उसके एक दिन बाद उसी इक़बाल का लिखा हुआ हुब्बुल वतनी का क़सीदा दिलो-जाँ से हिंदोस्तान में पढ़ा जाता है, आत्मसात किया जाता है, जिया जाता है और दिलों में महफ़ूज़ कर लिया जाता है!

यह तराना उनमुक्त है, किसी दबाव या लालच में नही लिखा गया था। किसी अंग्रेज़ी अफ़सर की प्रशंसा नहीं थी। इसमें गंगा का ज़िक्र है, वो गंगा जो बंधनों से परे है, विशाल है, किसी के पापों को धोती है तो किसी को वुज़ू के लिए पानी मुहय्या कराती है।

इसमें महान हिमालय का ज़िक्र है जो आसमान को छूता है। बुलंदियो का दर्स देता है, रचनात्मक और पासबानी ख़्यालात को फ़रोग़ देता है। इक़बाल हिंदुस्तानियों को बुलबुल कहते है और इस मुल्क को बग़ीचा... बग़ीचा, जिसमें जीवन हो !!

और सब से बड़ी चीज़ यह कि इस मुल्क के बाशिंदो के "आइडेंटिटी क्रायसिस" का हल इक़बाल ने निकाला। आज मोहन भागवत साहब जिन धार्मिक पैमानों पर समीकरणें उलटी-सीधी कर रहे हैं, उसके लिए अल्लामा बहुत पहले ही कह गये--"मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना" !!! साथ ही क़ौमी एकता का दर्स देते हुए आयडेंटिटी का मसला इस तरह हल किया--"हिंदी हैं हम, वतन है हिंदोस्ताँ हमारा"!

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