कभी भूल कर बताऊंगा,
तुम क्या करोगे पूछकर,
स्वयं प्राण अपने जलाऊंगा. १
कभी हौंसलो से गिला नहीं,
क्या ज़िन्दगी से मिला नहीं,
कमी तो इन परों की थी,
आज इन परों को जलाऊंगा. २
कहता था अपना हमसफ़र,
रूठकर वो गया किधर,
यदि खुश है मेरी मौत से,
तो मर के उसको मनाऊंगा. ३
लौ से क्यों भला लौ लगे,
मुझे रौशनी भी बुरी लगे,
क्या करूँ इस शमा का मैं,
अब सहर्ष इसको बुझाऊंगा. ४
अपनी जीवन व्यथा हूँ मैं,
विफलता की प्रथा हूँ मैं,
क्यूँ दूर भागूं इनसे अब,
मैं तो जश्न इनका मनाऊंगा. ५
मेरी ज़िन्दगी बेदार थी,
बस नीतियाँ बेकार थीं,
मुझे हर क़दम पे दग़ा मिला,
अब क़दम संभल के उठाऊंगा. ६
नवेद अशरफ़ी
08 जनवरी 2010
08 जनवरी 2010
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