ख़ालिस मक्खन, दूध, मखाणे कित्थे गए ! समय सुहाणे गीत पुराणे कित्थे गए ! Pure butter, milk…
Read moreसत्य को लकवा मार गया है वह लंबे काठ की तरह पड़ा रहता है सारा दिन, सारी रात वह फटी–फटी आँखों…
Read moreअभी अभी इधर से गुज़रे हैं चम्पई हवा के लज़ीज़ झोंके बहुत ख़ामोश, तुम्हारी आँखों की ठण्डक लिए कुछ अब…
Read moreये कुण्ठाएँ और अवसाद प्रकृति का प्रारुप हैं मानव जाति का बरसों का अर्जन स्खलित होती आशाएँ च…
Read moreडबडबाई स्याह रातें, पुरकैफ़ हैं, मगर इतनी भी नहीं.... इक सुकून है, अच्छा ज़रा भी नहीं...! ख़र…
Read moreसोचता हूँ, काश तुम होते... अभी संदली धूप, उफ़क़ के आग़ोश में लिपटी होगी। अभी ओस की बूँदो …
Read moreएक भेद तुमसे छुपाऊंगा, कभी भूल कर बताऊंगा, तुम क्या करोगे पूछकर, स्वयं प्राण अपने जलाऊंगा…
Read moreआशाओं के गगन में, प्रकाश ढून्ढता हूँ. सागर की हर लहर में, विश्वास देखता हूँ १ कभी इकब…
Read moreगणतंत्र का ग्रन्थ, मेरा यह संविधान, पवित्र है मेरे विचारों सा. सूरज का तेज, वायु का वेग…
Read moreचंचल- चितवन, अँखियों में काजल, मेरे जीवन की मधुशाला है, वह मेरी स्वप्नबाला है.१ नै…
Read moreचाँद विक्षिप्त है, धरती के लिए, अनायास ही घूमता है. किन्तु इसी चाँद को, एक चकोर भी देखता है. निराका…
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